रचनाकार ;-उदय कोलियारे
जनम मरन के ये संगवारी, महिमा कतिक मे गाव।
पेड़ बिना प्रकृति अधुरा, जीवन सब मर जाहि,
रौद्र रूप भीषण गर्मी म,धरती ह जर जाही।।
मनखे मन के मति भ्रष्ट हे,पेड़ बहुत कटत हे,
पेड़ बहुत कटावत हे,वर्षा कहा ले होही,
बिना अनाज के जीव-जंतु सब,प्राण अपन खोही।
वर्षा के अभाव में,नदी -तरिया सब सुखही,
सोचों बिना पानी के तब जीवन कतिक दुखही।।
कमती होंगे जीवन धरती म,रोग बहुत बटत हे।
पेड़ नहीं रही अगर त,हवा कहाँ से आही,
हवा बिना सब जीव जंतु मन,सोंचव कहाँ वो जाही।।
पेड़ नहीं रही अगर त,हवा कहाँ से आही,
हवा बिना सब जीव जंतु मन,सोंचव कहाँ वो जाही।।
पेड़ बहुत कटावत हे,वर्षा कहा ले होही,
बिना अनाज के जीव-जंतु सब,प्राण अपन खोही।
वर्षा के अभाव में,नदी -तरिया सब सुखही,
सोचों बिना पानी के तब जीवन कतिक दुखही।।
Bahut sunder
ReplyDeleteachchha lga to share kriye
Delete👌👌👌bahut hi badhiya bhaiya ji
ReplyDeletevery nice bhaiya 👌👌👌👌
ReplyDeletevery nice bhaiya 👌👌👌👌
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