रचनाकार --- उदय सिंह कोलियारे
भगवान तेरे इंसान की हालात, क्या हो गयी है आज।
तार-तार कर रहे अस्मिता, जरा न आवे लाज।
करतूत है ऐसी इंसानों की, लज्जा भी शर्मा जाये।
देख रहे हो पत्थर बनकर, तुम क्यों नजर झुकाये।
कितने ही अरमानों से, तुमने इंसान बनाया होगा।
कितनी रातें,कितने दिन तक, तुमने इन्हें बनाया होगा।
सोचा होगा तुमने यह भी, इंसान मेरी सर्वोत्तम कृति है।
भूल गए इंसान तुझे भी, पशुओं सा उसकी प्रवृति है।
द्वार तुम्हारे चढ़ कर वह तो, इंसानियत को रौंदा है।
अस्तित्व तुम्हारा है कि नहीं, सवाल मन में कौंधा है।
अस्तित्व तुम्हारा है यदि, आ करके इन्साफ करो।
लूटा जो मासूम की इज्जत, आ करके उन्हें साफ़ करो।
नहीं बैर है मेरा तुझसे, मुझे बस यही कहना है।
लुटे ना मासूम की इज्जत, जो उसका गहना है।
इंसान बनाया है तो भगवन, सबमें इंसानियत भर दें।
डिगे नहीं मन किसी का, सबकी ऐसी नजर कर दे।
पिछले Blog को नहीं पढ़े हैं तो इस लिंक धरती के शृंगार- "पेड़" में जाके देखें।
"सधन्यवाद"
सम्पादक :-मधु कुमार ठाकुर
भगवान तेरे इंसान की हालात, क्या हो गयी है आज।
तार-तार कर रहे अस्मिता, जरा न आवे लाज।
करतूत है ऐसी इंसानों की, लज्जा भी शर्मा जाये।
देख रहे हो पत्थर बनकर, तुम क्यों नजर झुकाये।
कितने ही अरमानों से, तुमने इंसान बनाया होगा।
कितनी रातें,कितने दिन तक, तुमने इन्हें बनाया होगा।
सोचा होगा तुमने यह भी, इंसान मेरी सर्वोत्तम कृति है।
भूल गए इंसान तुझे भी, पशुओं सा उसकी प्रवृति है।
द्वार तुम्हारे चढ़ कर वह तो, इंसानियत को रौंदा है।
अस्तित्व तुम्हारा है कि नहीं, सवाल मन में कौंधा है।
अस्तित्व तुम्हारा है यदि, आ करके इन्साफ करो।
लूटा जो मासूम की इज्जत, आ करके उन्हें साफ़ करो।
नहीं बैर है मेरा तुझसे, मुझे बस यही कहना है।
लुटे ना मासूम की इज्जत, जो उसका गहना है।
इंसान बनाया है तो भगवन, सबमें इंसानियत भर दें।
डिगे नहीं मन किसी का, सबकी ऐसी नजर कर दे।
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"सधन्यवाद"
सम्पादक :-मधु कुमार ठाकुर